मनसबदारी प्रथा या प्रणाली क्या है , कब और किसने क्यों शुरू की .
मनसबदारी प्रथा मुगल काल में सम्राट अकबर द्वारा शुरू की गई एक प्रशासनिक व्यवस्था थी . भारत में बिखरी राजनीतिक परिस्थितियों को देखकर अकबर समझ गया था कि यहां शासन चलाने के लिए सैन्य प्रणाली पर आधारित एक शक्तिशाली प्रशासनिक व्यवस्था की जरूरत है .
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" मनसब " का अर्थ है पद या रैंक .
मनसब के आधार पर अधिकारियों के वेतन और पद निर्धारित होते थे . अकबर के समय सैनिक भर्ती जाति अथवा वंश के आधार पर की जाती थी , योग्यता के लिए कोई विशेष स्थान नहीं था . उच्चवंशीय न होने पर व्यक्ति के राजकीय सेवा में प्रवेश के अवसर सीमित थे .
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" मनसबदारी प्रथा का आरंभ सर्वप्रथम अकबर महान ने 1575 में किया ."
मनसबदारी प्रथा दो प्रकार की होती थी -
1- जात .
2- सवार .
जात का मतलब पद और सवार का मतलब घुड़सवार से था , मतलब पद के अनुसार ही व्यक्ति को तय की गई घुड़सवारों की संख्या रखने का आधिकार होता था और पद और सैनिक संख्या के आधार पर उसका वेतन तय किया जाता था .
मनसबदारों की नियुक्ति -
मनसबदारों की नियुक्ति बादशाह स्वयं करता था और उसकी इच्छानुसार वह पद पर बने रह सकता था .
" अकबर के समय कुछ महत्वपूर्ण मनसब राजघराने होते थे जैसे - राजा मानसिंह , मिर्जा शाहरूख और मिर्जा अजीज कोका "
मनसबदारों की श्रेणियां -
उच्च या प्रथम श्रेणी -
इसके अनुसार 5,000 जात / 5,000 सवार .
मध्यम या द्वितीय श्रेणी -
इसके अनुसार 5,000जात/ 3,000 सवार .
निम्न या तृतीय श्रेणी -
इसके अनुसार 3,000 जात / 2,000 सवार .
मनसबदारों के कार्य -
मनसबदारों को युद्ध पर भेजना , विद्रोह रोकना , नए राज्यों को जीतना आदि .
वेतन व्यवस्था -
अकबर ने जागीरदारी प्रथा को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर मनसबदारी व्यवस्था को शुरू किया .जिसमें वर्गों के अंतर्गत मनसबदारों को वार्षिक वेतन 240 रू से अधिकतम 9,000 रू था .
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