मुगल बादशाह हुमायूँ का जीवन परिचय और इतिहास ; Humayun Biography & History .

 भारत में बाबर ने निधन के बाद दूसरे मुगल शासक और बाबर के बेटे हुमायूँ का जीवन परेशानी में बीता . हुमायूँ अपनी युवा अवस्था तक अपनी शारीरिक बीमारियों से जूझता रहा . लेकिन जब हुमायूँ ठीक होने लगा तभी उसके पिता और भारत में प्रथम मुगल बादशाह बाबर बीमार पड़ गया और कुछ समय बाद उसकी मृत्यु हो गई .


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हुमायूँ - जन्म , परिवार और मृत्यु संक्षेप में -

वास्तविक नाम = नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ .

प्रसिद्ध नाम = हुमायूँ .

जन्म = 6 मार्च , 1508 काबुल .

पिता = मुगल बादशाह बाबर .

माता = माहम बेगम .

पत्नी = हमीदा , बानू बेगम , चांद बीबी आदि .

पुत्र = अकबर , मिर्जा मुहम्मद हाकिम .

पुत्री = बख्तूनिस बेगम , बख्शी बानु बेगम .

मृत्यु = 1 जनवरी 1556 .

कब्र = आगरा , हुमायूँ का मकबरा .

हुमायूँ का शुरूआती जीवन , जन्म और राज्याभिषेक -

हुमायूँ का जन्म 6 मार्च 1508 में काबुल में हुआ था . हुमायूँ अपनी युवावस्था तक बीमारी से जूझता रहा . जिसे देख बाबर ने ईश्वर से प्रार्थना की कि उसके बेटे को ठीक कर दे और उसकी बीमारी उसे दें दे . यह एक आश्चर्य ही था कि कुछ समय बाद बाबर बीमार होने लगा और उसका बेटा हुमायूँ ठीक रहने लगा . 1530 में बाबर की मृत्यु हो गई . उस समय हुमायूँ की उम्र 23 साल थी .

बाबर की मृत्यु के बाद 23 साल की उम्र में 29 दिसंबर 1530 में हुमायूँ का राज्यभिषेक हुआ और आगरा में सिंहासन पर बैठा . उसके भाई कामरान मिर्जा को काबुल और लाहौर का शासन मिला .

हुमायूँ के लिए उसका भाई कामरान मिर्जा ही उसका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी बना . हुमायूँ ने अफगानिस्तान , पाकिस्तान और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों पर साल 1531 से 1540 तक शासन किया . इसके बाद 1555 से 1556 तक हुमायूँ ने राज किया .

कालिंजर का युद्ध 1531 ( देवरा ) - 

बाबर का उत्तराधिकारी  बनने के बाद हुमायूँ का सर्वप्रथम अभियान कालिंजर के राजा प्रतापरुद्र देव के खिलाफ था . दोनों शासकों में संधि हुई और प्रतापरुद्र देव ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली , जिसके बाद प्रतापरुद्र ने धन और सैन्य सम्मान सहित हुमायूँ को विदा किया.

दौहारिया का युद्ध हुमायूँ और महमूद लोदी  ( 1532) -

1532 में अफगान सरदार महमूद लोदी और हुमायूँ के बीच दौहारियां नामक स्थान पर लड़ा गया . यह युद्ध वास्तव में हुमायूँ द्वारा अफगानों की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए लड़ा गया . जिसमें हुमायूँ की विशाल सेना ने उचित संगठन शक्ति के चलते महमूद लोधी को एक शर्मनाक हार का सामना करना .

चुनार युद्ध का समझौता हुमायूँ की सबसे बड़ी भूल ( 1532 ) -

चुनार का युद्ध मुगल शासक हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच हुआ . दौहारिया युद्ध की सफलता के बाद हुमायूँ अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना और शेरशाह की बढ़ती हुई शक्ति को दबाने के लिए लड़ा गया .

हुमायूँ की सेना से खुद को घिरा देख शेरशाह सूरी ने हुमायूँ की अधीनता स्वीकार कर ली और बदले में हुमायूँ ने शेरशाह को छोड़ दिया .

हुमायूँ और बहादुर शाह का युद्ध ( 1535 ) -

गुजरात का शासक एक योग्य रणनीतिकार और महत्वाकांक्षी शासक था . बहादुर शाह ने अपनी कुशल रणनीति के तहत अपने राज्य में उन सभी शासको को शरण दी जो मुगलों से डरते थे . गुजरात के शासक बहादुर शाह ने टर्की के एक प्रख्यात एव कुशल तोपची रूमी खां की मदद से एक शानदार तोपखाने का निर्माण कराया .

बहादुर शाह की बढ़ती ताकत दबाने के लिए हुमायूँ ने 1535 में  " सारंगपुर " में आक्रमण कर दिया . दोनों के बीच हुए संघर्ष में गुजरात के शासक बहादुर शाह को हुमायूँ के हाथों हार का सामना करना पड़ा . 

चौसा का युद्ध ( 1539 ) - 

इन सब के बीच शेरशाह सूरी अपनी ताकत काफी बढ़ा चुका था और युद्ध के लिए तैयार था . चौसा का प्रसिद्ध युद्ध हुमायूँ और शेरशाह सूरी के बीच 1539 में गंगा नदी के तट पर लड़ा गया . 

शेरशाह के नेतृत्व में अफगान सेना ने मुगल सेना को पूरी तरह पराजित कर दिया . इस युद्ध में हार के बाद हुमायूँ ने गंगा नदी पर कर अपनी जान बचाई .

कन्नौज का युद्ध ( 1540 ) - 

कन्नौज के युद्ध को विलग्राम का युद्ध भी कहा जाता है , जो शेरशाह सूरी और मुगल शासक हुमायूँ के बीच लड़ा गया था .

शेरशाह सूरी इस युद्ध में पहले से भी अधिक मजबूत स्थिति में था उसकी सेना हुमायूँ के मुकाबले काफी बड़ी थी साथ ही शेरशाह का नेतृत्व भी कुशल था . हुमायूँ यह समझ चुका था कि शेरशाह से जीतना उसके लिए काफी मुश्किल है तब उसने अपने भाइयों से मदद मांगी लेकिन उन्होंने इंकार कर दिया . साथ ही उसकी तैयारियों में अनेक प्रकार की रूकावटें डाली .

इस युद्ध में अफगानी सेना ने हुमायूँ की सेना को बड़ी आसानी से पराजित कर दिया . इस युद्ध के बाद हुमायूँ बिना राज्य का बादशाह था . अब दिल्ली का राज्य शेरशाह सूरी के अधिकार में था .

इस युद्ध को हारने के बाद हुमायूँ सिंध भाग गया और 15 सालों तक जंगलों में निर्वासित जीवन व्यतीत किया . इसी दौरान हुमायूँ ने अपने आध्यत्मिक गुरू अमीर अली की पुत्री हमीदा बेगम से 29 अगस्त 1541 को विवाह कर लिया जिससे हुमायूँ को अकबर महान की प्राप्ति हुई .

इसके बाद हुमायूँ ईरान चला गया . ईरान के शासक तहमास्य के पास शरण ली . 15 वर्षों के लंबे समय के बाद  ईरान से सैन्य सहायता प्राप्त करने के बाद उसने कंधार के मध्य एशिया क्षेत्रों को जीता . इसी दौरान दिल्ली के शासक शेरशाह सूरी की मृत्यु हो गई .

1555 हुमायूँ का दिल्ली शासन - 

1555 को शेरशाह की मृत्यु के बाद हुमायूँ ने फिर से दिल्ली की राजगद्दी पर अपना अधिकार प्राप्त कर लिया .

1555 में हुमायूँ और अफगान सेना के सेनापति सिंकदर सूर के बीच हुआ और इसमें अफगान सेना को पराजय हाथ लगी .

हुमायूँ का निधन ( 1556 ) -

मात्र 6 माह के अपने शासन के दौरान हुमायूँ अपने महल की सीढ़ियों से फिसल गया और उसी समय उसकी मृत्यु हो गई .

याद रखने योग्य जानकारी -

1 - हुमायूँ का जन्म 6 मार्च ,1508 काबुल .

2 - हुमायूँ 29 दिसम्बर को आगरा में 23 वर्ष की उम्र में सिंहासन पर बैठा .

3 - 1533 में  " दीनपनाह " नामक नगर की स्थापना की .

4 - हुमायूँ ने 25 जून , 1539 को शेर खां से चौसा का प्रसिद्ध युद्ध लड़ा जिसमें शेर खां विजयी रहा . इस युद्ध के बाद उसे शेरशाह की पदवी दी गई .

5 - कन्नौज का युद्ध 17 मई 1540 को शेरशाह और हुमायूँ के बीच हुआ जिसमें हुमायूँ पूर्ण रूप से पराजित हुआ और शेरशाह सूरी ने आगरा और दिल्ली पर कब्जा कर लिया .

6 - " कन्नौज युद्ध के बाद हुमायूँ ने 15 वर्षों तक गुमक्कडों जैसा जीवन व्यतीत किया .

7 - " निर्वासन के दौरान ही हमिदा बानू बेगम से 29 अगस्त 1541 को हुमायूँ का विवाह हुआ . जिससे महान सम्राट अकबर पैदा हुए.

8 - " 1555 में हुमायूँ ने वर्तमान शासक सिकंदर सूरी को पराजित कर पुन: दिल्ली पर कब्जा कर लिया .

9 - 1 जनवरी , 1556 को पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिर कर हुमायूँ का निधन हो गया .

10 - " हुमायूँनामा , हुमायूँ की बहन गुल-बदन बेगम ने लिखी .

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