इक्ता प्रथा क्या है , कब और किसने शुरु की ..

इल्तुतमिश ने " इत्ता प्रथा " 1226 ई० में प्रारम्भ की इत्ता का अर्थ होता है धन के स्थान पर तनख्वाह के रुप में भूमि प्रदान करना .

इत्ता प्रथा के अंतर्गत सैनिकों / राज्य आधिकारियों और कर्मचारियोंं को वेतन में रुपये, पैसों की जगह भूमि दी जाती थी . इक्ता प्रथा का अंत अलाउद्दीन खिलजी ने किया तथा फिर से राज्य कर्मचारियों को वेतन के रुप में नगद भुगतान फिर से शुरु किया.

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इल्तुतमिश का इतिहास - 

  • इल्तुतमिश दिल्ली सल्तनत का वास्तविक संस्थापक था .
  • इल्तुतमिश का शासन काल 1210 से 1236 तक 26 वर्ष तक रहा .
  • वह कुतुबुद्दीन ऐवक का दामाद एंव गुलाम था .
  • दिल्ली का सुल्तान बनने से पहले इल्तुतमिश बदांयू का सूबेदार था .
  • इल्तुतमिश ने चालीस अमीर सूबेदारों का एक दल " तिकर्न एचहलगानी " बनाया. 

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इक्ता व्यवस्था के शुरुआत - 

इल्तुतमिश की इक्ता व्यवस्था से पहले भी यह चलन में थी ,इसकी शुरुआत भारत से बाहर फारस (ईरान ) तथा पश्चमी एशिया में हो चुकी थी .

उदाहरण - 

(1) भारत के मुहम्मद गौरी  द्वारा कुतुबुद्दीन ऐबक को हांसी  ( हरियाणा ) का क्षेत्र इक्त के रुप में दिया गया ,  ( यह इतिहास का पहला इक्त था ) .
(2) मुहम्मद गौरी द्वारा उच्छ ( सिंध ) का क्षेत्र इक्त के रुप में नसीरुद्दीन कुबाचा को दिया गया.

लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इक्त की शुरुआत इल्तुतमिश ने की .

इल्तुतमिश के समय में मुक्ति का तबादला एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में किया जाता था .दिल्ली के आसपास के कुछ इलाके तथा दोआब का कुछ हिस्सा खालसा भूमि के अंतर्गत ले लिया .इसमे हशम-ए-क्लब जो 2000 से 3000 के करीब थे को दोआब का इलाका इक्ता के रूप में दिया .इस प्रकार इल्तुतमिश के समय दो प्रकार के इक्ता थे .

इक्त के प्रकार -

(1)छोटी इक्त .

(2) बड़ी इक्त .

छोटी इक्त - 

ये आमतौर पर वेतन के रुप में सैनिकों को दी जाती थी .इससे संबंधित इक़्तेदार केवल राजस्व वसूली करना था .

बड़ी इक्त - 

महत्वपूर्ण क्षेत्र अमीरो व सेनाधिकारियों को दिये जाते थे . ये इक्तेदार , इक्त भूमि में राजस्व वसूली के साथ साथ सैनिकों और प्रशासनिक कर्तव्य भी करते थे .

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इक्त प्रणाली की आवश्यकता - 

इक्त प्रणली की शुरुआत आरंभिक तुर्की सुल्तानों की आवश्यकता से हुई . राजधानी से दूर स्थित सल्तनत के वे क्षेत्र जिनसे राजस्व वसूली आसानी से न हो , सुल्तान  द्वारा इक्त के रुप में दी जाने लगी . ये इक्तायें सुल्तान की प्रशासनिक और सैनिक सेवा करने के बदले प्रदान की जाती थी . इस प्रकार सुल्तानों ने इक्तायें बांटकर सीमावर्ती क्षेत्रों में सल्तनत का प्रभाव स्थापित किया तथा नियमित रुप से राजस्व की वसूली दूसरी तरफ संबंधित आधिकारी को अपने अधीन एक क्षेत्र मिला , जिसमें अपनी योग्यता के अनुरुप वह राजस्व प्राप्त कर सकता था .

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इक्तेदारो के कार्य -

इक़्तेदार अपनी इक्ता में प्रशासनिक व सैनिक कार्यो को पूरा करता था . इक्ता से प्राप्त राजस्व मेंं अपना वेतन तथा प्रशसनिक वा सैनिक खर्च निकालकर शेष रकम को सुल्तान के राजकोष में जमा कराता था . इस शेष रकम को फाजिल कहते थे .
इक़्तेदार अपनी इक्ता में सुल्तान के नाम से शासन करता था , उसका पद वंशानुगत नही था . तथा इक़्तेदार को सिक्के चलाने का अधिकार भी नही था .इक़्तेदार का पद हस्तान्तररित होता था . समय - समय पर सुल्तान इक्तेदारों को स्थनान्तरण करता था . 

फिरोज तुगलक ने इक़्तेदार का पद वंशानुगत कर दिया था .

इक़्तेदार प्रणाली के दोष - 

इक़्तेदार सामान्तय: इक्ता की आय व खर्च में हेराफेरी कर  भ्रष्टाचार करते थे .इसे रोकने के लिए तथा इक्तेदारों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए अलग - अलग सुल्तानों ने अलग - अलग कदम उठाये .

(1) बलबन ने ख्वाजा नामक अधिकारी नियुक्त किया , जो इक्त भूमि की आय का आकलन करता था .

(2) अलाउद्दीन ने इक्तेदारों के स्थानांतरण पर बल दिया तथा 3 वर्ष से अधिक किसी इक़्तेदार को एक इक्ते में नही रखा . इसके अलावा उसने इक्ता प्रणाली में केन्द्रीय प्रशासन के हस्तक्षेप को बढाया .

(3) गयासुद्दीन तुगलक की व्यक्तिगत आय तथा उसके अधीन सैनिकों का वेतन अलग - अलग रुप से निर्धारित कराया . 

(4)मुहम्मद बिन तुगलक ने इक्तेदारों पर अत्यधिक नियंत्रण लगाया . उसने इक्तेदारों के समकक्ष इक्ता क्षेत्र में अमीर नामक अधिकारी को नियुक्त किया जो इक्ता का प्रशासन चलाता था . जबकि वसूली का अधिकार इक़्तेदार के पास बने रहने दिया .
इस अत्यधिक नियंत्रण के कारण ही इक्तेदारों  ने मुहम्मद बिन तुगलक के समय अनेक विद्रोह किये .

प्रमुख बातें -

  •  फिरोज तुगलक के समय इक्तेदारों का पद वंशानुगत कर दिया गया . 
  • इक़्तेदार या इक्ता प्रथा को प्रशासनिक रुप इल्तुमिश ने दिया तथा उसने पद को स्थानान्तरित रखा था .
  • लोदी काल मेंं इक़्तेदार को वजहदार कहा जाता था .

इल्तुमिश द्वारा बनवाई गई प्रमुख इमारतेेंं - 


(1) भारत में पहला मकबरा इल्तुतमिश ने बनवाया , इस ने दिल्ली में स्वंम के मकबरे का भी निर्माण कराया . जो सिक्र्च शैली में बना भारत का पहला मकबरा माना जाता है .


(2) कुतुबमीनार को इल्तुतमिश ने पूरा कराया तथा अजमेर की मस्जिद का निर्माण कराया .

(3) इल्तुतमिश को भारत में ( गुम्बद निर्माण का पिता )कहा जाता है उसने सुल्तानगढ़ी का निर्माण कराया .

(4) इल्तुतमिश ने बदायू में हौज ए खास निर्माण कराया .

इल्तुतमिश द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध - 

  • इल्तुतमिश ने तुर्की राज्य को मंगोल आक्रमण से बचाया .
  • इल्तुतमिश ने 1226 ई0 में बंगाल पर विजय पाकर बंगाल को दिल्ली सल्तनत का सूबा बनाया .
  • इल्तुतमिश ने 1226 में रणथम्भोर जीत तथा परमारों की राजधानी मंदौर पर अधिकार कर लिया .
  • इल्तुतमिश की सेना हरम ए कल्ब कहलाती थी .
  • इल्तुतमिश के काल में मंगोलों ने चंगेज खां के नेतत्व में आक्रमण किया .

याद रखने योग्य जानकारी -

1 -  भारत में इक्ता प्रथा इल्तुतमिश ने शुरू की .

2 -  इल्तुतमिश ने इक्ता प्रथा 1226 ई० में शुरू की .

3 -  इल्तुतमिश का शासन काल 1210 से 1236 , 26 साल तक रहा .

4 -  इल्तुतमिश , कुतुबुद्दीन ऐवक का दामाद एंव गुलाम था .

5 -  इल्तुतमिश ने चालीस अमीर सूबेदारों का एक दल बनाया जिसे 
" तिकर्न एचहलगानी " कहा गया .

6 -  इल्तुतमिश को भारत में ( गुम्बद निर्माण का पिता )कहा जाता है.

7 - इक्ता दो प्रकार की होती है  1 - छोटी इक्ता , 2 - बड़ी इक्ता .

8 -  इल्तुतमिश ने 1226 ई0 में बंगाल पर विजय पाकर बंगाल को दिल्ली सल्तनत का सूबा बनाया .

9 -  इल्तुतमिश ने 1226 में रणथम्भोर जीत तथा परमारों की राजधानी मंदौर पर अधिकार कर लिया .

10 - इल्तुतमिश की सेना हरम ए कल्ब कहलाती थी .

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