विनायक दामोदर सावरकर का जीवन परिचय और माफ़ीनामे की सच्चाई .

विनायक दामोदर सावरकर को हिंदुत्व की विचारधारा को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है .वह एक इतिहासकार , राष्ट्रावादी नेता , विचारक और हिंदू महासभा के प्रमुख सदस्य थे . जिसका उद्देश्य हिंदुओं के बीच सामाजिक और राजनीतिक एकता को प्राप्त करना था .  " हिंदुत्व "  शब्द जो भारत में हिंदू राष्ट्रवाद का एक रूप है , 1921 में सावरकर द्वारा रची गई रचना के माध्यम से लोकप्रिय हुआ था . 



विनायक दामोदर सावरकर का संछिप्त परिचय - 

नाम          = विनायक दामोदर सावरकर.

जन्म         = 28 मई 1883 .

जन्म स्थान = भागपुर गांव , नासिक ( महाराष्ट्र ) .

पिता          = दामोदर सावरकर .

माता          = राधाबाई .

पत्नी          = यमुनाबाई .

भाई , बहन = गणेश , नारायण और मीनाबाई .

मृत्यु          = 26 फरवरी 1966 .

विनायक दामोदर सावरकर का बचपन , शिक्षा और गतिविधियां  -

विनायक दामोदर सावरकर का जन्म 28 मई 1883 को ब्रिटिश भारत के नासिक जिले के भागपुर गांव में हुआ था . सावरकर जब मात्र 9 साल के थे तभी हैजे की बीमारी के कारण इनकी माता राधाबाई का निधन हो गया .

जब सावरकर 16 साल की युवा अवस्था में थे तभी 1899 में प्लेग के कारण इनके पिता दामोदर सावरकर का निधन हो गया .

विनायक दामोदर सावरकर ने अपनी कट्टर हिंदुत्ववादी सोच को बचपन में ही दर्शा दिया था जब एक मुस्लिम लड़के के साथ हुए आपसी झगड़े में उन्होंने एक मस्जिद पर हमला किया और उसे तोड़ने का प्रयास किया .

माता - पिता की मृत्यु के बाद सावरकर के बड़े भाई गणेश ने परिवार का पालन पोषण किया वही छोटे भाई विनायक दामोदर सावरकर की भी उचित शिक्षा का प्रबंध किया .

विनायक दामोदर सावरकर की प्रारम्भिक और उच्च शिक्षा -

विनायक दामोदर सावरकर ने शिवाजी हाईस्कूल नासिक से 1901 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से BA किया .

कानून की पढ़ाई पढ़ने के लिए 1906 में सावरकर लंदन चले गए . वह पर उन्होंने 1857 की क्रांति के संबंध में एक पुस्तक लिखी , जिस पर अंग्रेजी शासन ने रोक लगा दी . जब वह कानून की शिक्षा के लिए लंदन में रह रहे थे , तभी उन्होंने इंग्लैंड में भारतीय छात्रों को ब्रिटिश शासन के प्रति विद्रोह करने के लिए उत्साहित किया .

इंग्लैंड में सावरकर का क्रांतिकारी आंदोलन -

अपनी पढ़ाई के दौरान सावरकर ने भारतीय छात्रों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने के लिए उत्साहित किया था . जिस कारण उन पर मुकदमा दर्ज हुआ और मुकदमे की जांच के लिए 13 मार्च 1910 को लंदन से वापस भारत भेज दिया गया . जब उन्हें लंदन से वापस भारत भेजा जा रहा था तभी उन्होंने वह से भागने का प्रयास किया लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 24 दिसंबर 1910 को अंडमान के कारावास की सजा सुनाई गई . इसके बाद 31 जनवरी 1911 को सावरकर को दोबारा आजीवन कारावास दिया गया , जो विश्व इतिहास की पहली और अनोखी सजा थी .

इंग्लैंड के इंडिया हाउस में सावरकर की गांधी जी से मुलाकात -

सावरकर ने दक्षिण अफ्रीका में रहकर वहां भारतीयों पर हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहें गांधी जी को इंडिया हाउस में खाने पर बुलाया . उस समय गांधी जी लंदन आए हुए थे . बातचीत के दौरान गांधी जी ने सावरकर से कहा कि आपकी रणनीति अंग्रेजों के खिलाफ जरूरत से ज्यादा आक्रमक है  , गांधी जी को बीच में रोकते हुए सावरकर ने कहा , आइए पहले खाना खाते हैं . गांधी जी ने सावरकर की दावत यह कहते हुए इंकार कर दी कि वो मांस नहीं खाते . तब सावरकर ने उनका यह कहते हुए उपहास उड़ाया कि कोई कैसे बिना मांस खाए अंग्रेजों की ताकत को चुनौती कैसे दे सकता है .

लंदन में 1906 से 1910 तक सावरकर की प्रमुख गतिविधियां -

लंदन में रहकर सावरकर ने लंदन के इंडिया हाउस में रहना आरम्भ कर दिया था . इंडियन हाउस उस समय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र हुआ करता था . जिसे पंडित श्याम प्रसाद मुखर्जी चला रहे थे . सावरकर ने वह  " फ़्री इंडिया सोसाइटी  "  का निर्माण किया जिसमे वो अपने भारतीय छात्रों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते थे . वही पर दूसरे मुख्य व्यक्ति लाला हरदयाल से सावरकर की मुलाकात हुई जो इंडिया हाउस की देखरेख किया करते थे .

सावरकर ने मित्रों को बम बनाना और गुरिल्ला युद्ध पद्दति की कला सिखाई .  1909 में सावरकर के मित्र और अनुयायी  मदनलाल ढींगरा ने एक सार्वजनिक बैठक में अंग्रेज अफसर कर्जन की हत्या कर दी . सावरकर पर हत्या की योजना में शामिल होने और हथियार भारत भेजने का आरोप लगा जिस कारण उन पर मुकदमें दर्ज हुए और  सावरकर को गिरफ्तार कर मुकदमें की जांच के लिए 13 मार्च 1910 को लंदन से वापस भारत भेज दिया गया .

सावरकर को सजा और अंडमान निकोबार जेल -

ब्रिटिश शासन द्वारा सावरकर को अपराधी ठहराते हुए उनके खिलाफ अदालत में केस दर्ज कराया गया जिसके निर्णय और सजा के रूप में उन्हें 50 साल की सजा सुनाई गई.  उन्हें सजा के लिए 4 जुलाई 1911 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह काला पानी भेज दिया गया . जहां पर ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह करने वालों को कड़ा दंड दिया जाता था .

विनायक दामोदर सावरकर का माफीनामा -

सावरकर 11 जुलाई 1911 को अंडमान पहुंचे और जल्द ही टूट गए और 29 अगस्त को उन्होंने अपना पहला माफ़ीनामा अंग्रेजों को भेजा .

" जिसमें उन्होंने लिखा था कि  - यदि उन्हें छोड़ दिया जाता है तो वे भारत के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलनों से अलग हो जायेंगे और ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादार रहेंगे ." 

इसके बाद 9 सालों में उन्होंने अंग्रेजी शासन को 6 बार माफी पत्र भेजे .
कैदी बरिंद्र घोष ने लिखा कि सावरकर बंधु हम लोगों को जेलर के खिलाफ आंदोलन करने के लिए गुपचुप तौर से भड़काते थे . लेकिन जब हम उनसे कहते कि खुलकर हमारे साथ आइए , तो वो पीछे हो जाते थे . और उनको कोई भी मुश्किल काम करने के लिए नहीं दिया जाता था .
साल 1924 में सावरकर को जेल से दो शर्तों के आधार पर छोड़ा गया . पहली - एक तो वो किसी राजनैतिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लेंगे और दूसरे - वो रत्नागिरि के जिला अधिकारी की अनुमति के बिना जिले से बाहर नहीं जाएंगे . साथ ही अंग्रेजी शासन द्वारा साठ रूपये महीना पेंशन भी दी जाने लगी जो अपने आप में एक आश्चर्य है .

विनायक दामोदर सावरकर की मृत्यु -

ऐसा माना जाता है कि सावरकर ने खुद अपने लिए इच्छा मृत्यु चुनी थी . अपनी मृत्यु से करीब एक महीने पहले से उन्होंने खाना -पीना त्याग दिया जिस कारण उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया और 26 फरवरी 1966 को 82 वर्ष की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई .

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