बीरबल की जीवनी . जन्म ,सम्राट अकबर से भेट और मृत्तु.

भारत में शायद ही कोई ऐसा शख्स हो जिसने अकबर बीरबल के किस्से न पढ़े हो . बीरबल मुगल सम्राट अकबर के दरबार में प्रमुख बजीर और अकबर के दरबार के नवरत्नों मेंं से एक थे . लेकिन हम बात करेंगे बीरबल के जन्म ,परिवार सम्राट अकबर से भेट और उनकी मृत्तु कहां कैसे हुई .

जीवन परिचय -

प्रतीकात्मक चित्र

नाम                -    महेश दास (चर्चित नाम बीरबल ) .

जन्म               -    1528 .

स्थान              -    कल्पी के नजदीक गांव टिकवनपुर (आज उत्तर प्रदेश में ).

पिता               -    गंगादास .

माता               -     अनभा दवितो .

मृत्तु                 -      1586 .

बीरबल -

प्रसिद्ध ऐतिहासिक पत्र बीरबल का जन्म 1528 में यमुना नदी के किनारे बसे एक छोटे से गांव टिकवनपुर के निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ था . बीरबल के बचपन का नाम महेश दास था . बीरबल अपने पिता गंगादास तथा माता अनभा देवी की तीसरी संतान थे . बीरबल हिंदी ,संस्कृत तथा फारसी के अच्छे जानकार थे . बीरबल कविताएंं भी लिखते थे , ज्यादातर उनकी कविताएं ब्रज भाषा में होती थी . इस वजह से उन्हें काफी प्रसिद्धि भी मिली थी . बीरबल मुगल सम्राट अकबर के दरबार में नौ सदस्यों के सलाहकारों के समूह में एक प्रमुख सदस्य थे . जिन्हें नवरत्न के रुप में जाना जाता है .

सम्राट अकबर -बीरबल की भेट -

इतिहासकारों में अकबर और बीरबल की भेट को लेकर बहुत सी कहानियांं प्रचलित है . अकबर और बीरबल की भेट के दो किस्से सबसे मशहूर हैं .
(1) सम्राट अकबर शिकार के बहुत बड़े शौकिन थे . वे किसी भी तरह शिकार के लिए समय निकाल ही लेते थे . एक बार सम्राट अकबर शिकार के लिए निकले , शिकार का पीछा करते -करते वहां जंगलों में काफी दूर तक निकल गए. जब शाम घिर आई तो उन्हें लगा कि वे लोग रास्ता भटक गए . सैनिक और सम्राट अकबर सभी भूखे प्यासे इधर उधर भटक रहे थे .किसी को समझ नहीं आ रहा था कि वह किस तरफ जाए .
इधर उधर भटकते हुए उन्हें एक तिराहा नजर आया . अकबर बहुत खुश हुए ,चलो अब किसी ना किसी तरह वे अपनी राजधानी पहुंच ही जाएंगे . लेकिन तिराहे पर आकर सब एक दूसरे की तरफ देखने लगे कि जाए तो जायें किस तरफ . सम्राट अकबर और सैनिक सभी उलझन में थे . वे सभी सोच में थे किंतु कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी .तभी उन्होंने देखा कि एक लड़का उन्हें सड़क के किनारे खड़ा -खड़ा घूर रहा है . सैनिकों ने यह देखा तो उसे पकड़ कर राजा के सामने पेश किया . अकबर ने कड़कती आवाज में पूछा , ऐ लड़के -आगरा के लिए कौन सी सड़क जाती है . लड़का मुस्कुराया और कहां , जनाब -ये सड़क चल नही सकती तो आगरा कैसी जायेगी . महाराज जाना तो आपको ही पड़ेगा और यह कहकर वह खिलखिलाकर हंस पड़ा . 
सभी सैनिक मौन खड़े थे ,और आश्चर्य से देखा रहें थे कि यह लड़का सम्राट अकबर से किस तरह से बात कर रहा है . लड़का , फिर बोल  " जनाब " लोग चलते है रास्ते नही . यह सुनकर इस बार सम्राट अकबर भी मुस्कुराया और कहा, तुम ठीक कहते हो . तुम्हारा नाम किया है अकबर ने पूछा . मेरा नाम महेश दास है महाराज ,और आप कौन है . अकबर ने अपनी अंगूठी निकाल कर महेश दास को देते हुए कहा, तुम सम्राट अकबर से बात कर रहें हो . मुझे निडर लोग पसंद हैं .तुम मेरे दरबार में आना और मुझे अंगूठी दिखाना , ये अंगूठी देख कर मैं तुम्हें पहचान लूंगा . अब तुम मुझे बताओं कि मैं किस रास्ते पर चलूं ताकि मैं आगरा पहुंच जाऊं . महेश दास ने अकबर के सामने सर झुका कर आगरा का रास्ता बताया और जाते हुए सम्राट अकबर को देखता रहा .
(2) दूसरी प्रचलित कथा - 
एक बार सम्राट अकबर ने अपने पान लगाने वाले नौकर को एक " पाओभर " (250 ग्राम ) चूना लेकर आने को कहा . नौकर किले के पास वाली दुकान से 250 ग्राम चूना लेने गया . पास में खड़े बीरबल को इतना चूना ले जाते देख कुछ शक हुआ , इसलिए बीरबल ने इस चूने वाले घटनाक्रम को नौकर से  विस्तार से जानता है और कहता कि अकबर ये चूना तुझको ही खिलावाएगा . तेरे पान में लगे ज्यादा चुने से बादशाह की जीभ कट गई है .इसलिए यह सब चूना तुझे ही खाना पड़ेगा . इसलिए इतना ही घी भी ले जाना ,जब बादशाह चूना खाने को कहे तो चूना खाने के बाद घी पी लेना .
नौकर दरबार में चूना लेकर जाता है और बादशाह नौकर को वह सब चूना खाने का आदेश देता है . नौकर वह सारा चूना खा लेता है ,लेकिन नौकर बीरबल की सलाह के अनुसार घी पी लेता है . अगले दिन जब सम्राट अकबर का वह नौकर पुन: जब राजदरबार पहुचता है तो अकबर नौकर को सही सलामत देख कर आश्चर्य होता है नौकर सारी बात बादशाह को बताता है ,कि कैसे दुकान के बाहर खड़े लड़के की समझ -बूझ से वह बच सका .
अकबर उस लड़के की बुद्धिमत्ता से प्रभावित हो कर उससे मिलने की इच्छा व्यक्त करते हैं . इस प्रकार सम्राट अकबर और बीरबल का आमना सामना होता है .

महेश दास की सम्राट अकबर से दरबार में भेट -

समय बीतता गया .सम्राट अकबर ने अपनी राजधानी आगरा की जगह फतेहपुर सीकरी को बना लिया . दूसरी तरफ महेश दास भी अब बड़ा हो चुका था . अब वह अपना भाग्य आजमाने सम्राट अकबर की राजधानी फतेहपुर सीकरी की तरफ चल दिया , साथ में उसके पास अकबर की दी अंगूठी भी थी .
राजधानी पहुंच कर जैसे ही महेश दास ने सम्राट अकबर के महल में प्रवेश करना चाहा तभी दरबान ने भाले से महेश दास का रास्ता रोका . तुम कहां प्रवेश कर रहे हो , महेश दास ने दरबान से अनेक बार विनती की लेकिन दरबान नहीं माना . लेकिन महेश दास भी हार मानने वालों में से नही था  .उसने दरबान को सम्राट अकबर की दी अंगूठी दिखाई . अब दरबान मेंं इतनी हिम्मत नहीं कि वह अकबर की अंगूठी ना पहचाने , फिर वह महेश दास से एक सौदा करता है कि सम्राट अकबर जो भी ईनाम देंगे उसका आधा हिस्सा तुम मुझे दोगो .महेश दास मुस्कुरा कर बोला ठीक है मुझे मंजूर है .
दरबार में पहुंच कर सम्राट अकबर के सामने झुक कर सलाम किया और कहा ,आपकी कीर्ति सारे संसार में फैले . अकबर मुस्कुराया और कहा ,कौन हो तुम और तुम्हें क्या चाहिए . महाराज में आपकी सेवा करने आया हूं यह कहते हुए महेश दास ने अंगूठी राजा के सामने रख दी . सम्राट अकबर ,तुम महेश दास हो . जी महाराज मैं वही महेश दास हूं . बोलो महेश दास तुम्हें क्या चाहिए . महाराज में चाहता हूं कि आप मुझे सौ कोड़े मारिये . राजा ने चौकते हुए कहा जब तुम ने कोई अपराध ही नहीं किया तो मैं ऐसा आदेश कैसे दे सकता हूँ . महेश ने नम्रता से उत्तर दिया नही महाराज मुझे सौ कोड़े ही मारिये .अब ना चाहते हुए अकबर ने सौ कोड़े मारने का आदेश देना पड़ा जल्लाद ने कोड़े मारना शुरू किया .जब पचास कोड़े पूरे हुए तब महेश बोला बस महाराज बस , क़्यो किया हुआ महेश दास दर्द हो रहा है अकबर ने पूछा नही महाराज ऐसी कोई बात नहीं है मैं तो अपना वादा पूरा कर रहा हूँ. कैसा वादा महेश ,अकबर ने पूछा .महाराज मैं जब महल में प्रवेश कर रहा था तो दरबान ने मुझे इस शर्त पर अंदर आने दिया कि जो भी कुछ उपहार मिलेगा मैं उसका आधा हिस्सा दरबान को दूंगा .अपने हिस्से के पचास कोड़े मैं खि चुका हूं अब दरबान को भी उसका हिस्सा मिलना चाहिए. यह सुनकर दरबार में बैठे सभी हंसने लगे ,दरबान को बुलाया गया और पचास कोड़े लगाये गए .अकबर ने महेश से कहा तुम बिल्कुल वैसे ही बहादुर और निडर हो ,जैसे बचपन में थे . तुम्हारी इसी बुद्धमानी की वजह से आज से तुम बीरबल कहलाओगे और मेरे मुख्य सलाहकार नियुक्त किए जाते हो .

बीरबल की मृत्तु -

1586 में अफगानिस्तान के यूसुफजई कबीले ने मुगल सल्तनत के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया . उनके दमन के लिए जो जैन खां कोका के  नेतृत्व में पहला सैन्य दल भेजा गया, लड़ते लड़ते वह सैन्य दल जब थक गया तो बीरबल के नेतृत्व में दूसरा दल वहां भेजा गया .बुद्धि के धनी बीरबल को सैन्य अभियानों का कोई अधिक अनुभव नही था  . पूर्व सेनापति कोका खां ,बीरबल से मन में छल कपट रखता था .बीरबल के नेतृत्त्व में कोका खां को लड़ना कतई गवारा नहीं था . कोका खां द्वारा गलत सलाह के चलते स्वात वैली में 8000 सैनिकों के साथ अकबर के खास सखा बीरबल वीरगति को प्राप्त हो गए ,इतना ही नहीं बीरबल के अंतिम संस्कार के लिए उनका शव भी बरामद नहीं हो सका . बीरबल की मौत बहुत ही दर्दनाक थी .


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