Baiju Bawra biography , संगीत सम्राट बैजू बावरा का जीवन परिचय .

बैजू बावरा एक ऐसा महान गायक जो गुमनामी में खो गया . बदले की आग में सुलगता हुआ बैजू बावरा संगीत को ऐसी ऊंचाई पर ले गया कि दुनिया उसके संगीत में रम गयी .

बैजू बावरा 1542-1613 तक भारत के ध्रुपद गायक थे . उनको बैजनाथ मिश्र के नाम से भी जाना जाता है. वे ग्वालियर के राजा मानसिंह के दरबार के गायक थे और अकबर के दरबार के महान गायक तानसेन के समकालीन थे.


बैजू बावरा का जीवन परिचय -

नाम       -        बैजनाथ मिश्र (बैजू बावरा ) .

जन्म      -        1542 .

जन्म स्थान -    चंदेरी .

मृत्यु      -         1613.

गुरु       -          हरिदास स्वामी .

प्रसिद्धि -          सम्राट अकबर के दरबार में तानसेन को मुकाबले में हराया . (इतिहासकारों में मतभेद हैं )

बैजू बावरा का प्ररम्भिक जीवन -

16 वीं शताब्दी के महान गायक बैजू बावरा का जन्म चंदेरी में1542 को शरद पूर्णिमा की रात एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था .पंडित बैजनाथ मिश्र को बचपन से संगीत में रुचि थी तथा लोग प्यार से उन्हें बैजू बुलाया करते थे .

बैजू की उम्र के साथ - साथ उनके गायन और संगीत में भी निपुणता आती गई .

जब बैजू युवा अवस्था में पंहुचे तो नगर की ही कलावती नामक युवती से प्रेम हो गया .

कलावती ,बैजू की प्रेमिका के साथ - साथ प्रेरणा स्रोत्र भी रहीं .

बैजू बावरा के पिता की मृत्यु -

अकबर के दरबार में नवरत्नों में से एक तानसेन के संगीत की गूंज हर जगह गूंजा करती थी . अकबर के दरबार में सिर्फ वो ही व्यक्ति गा सकता था जो तानसेन से बेहतर गाता हो .

एक बार अकबर के दरबार में बैजू के पिता ने गाने के लिए अनुमति मांगी पर तानसेन के संतरी ने बैजू के पिता का अपमान कर दरबार से बाहर निकलवा दिया .इस अपमान से बैजू के पिता को इतना आहत हो गए कि उनकी  मृत्यु हो गई.

बैजू के पिता जब मृत्यु शैय्या पर थे तो उन्होंने बड़ी पीड़ा भरे स्वर में पुत्र से कहां  " बेटा ,मैं अपनी संगीत कला के द्वारा जीते जी अपने दुश्मन को हरा नही सका , इस बात की मेरे मन में बड़ी भारी पीड़ा है  " बैजू ने पिता के समक्ष भावुक स्वर में प्रण किया . पिताजी मैं आपके दुश्मन से बदला लूंगा . इसके बाद  बैजू के पिता ने पिता ने सदा के लिए आंखे मूंद ली . 

पिता की मृत्यु के बाद बैजू ने गांव के पुजारी के यहां शरण ले ली और स्वयं से ही संगीत का अभ्यास करने लगा .

बैजू का प्रेम -

पिता के मरने के बाद स्वयं से ही संगीत अभ्यास करने लगा . इसी बीच उसे गांव के नाविक की बेटी " गौरी " से प्रेम हो गया . इस प्रेम में बैजू ऐसा खोया की अपने पिता के अपमान का बदला लेने की कसम ही भूल गया .

बैजू के गांव पर डाकुओं का हमला -

कुछ समय बाद जब गांव पर डाकुओं ने हमला किया तो बैजू ने डाकुओं के आगे विनती करके गांव की रक्षा करने की कोशिश की पर बैजू की किस्मत में तो कुछ और ही लिखा था . जिन डाकुओं ने बैजू के गांव पर हमला किया उन डाकुओं की सरदार जो एक लड़की थी उसे बैजू से पहली नजर में ही प्यार हो जाता है और उसने शर्त रखी कि गांव को तब ही छोड़ा जाएगा जब बैजू उनके साथ चले .बैजू डाकुओं के साथ चलने को तैयार हो जाता है और उनके साथ चला जाता है. बाद में डाकुओं की सरदार बैजू को बताती है कि वो यहां के पुराने राजा की बेटी है और यहां बदला लेने आयी है. बदला शब्द सुनते ही बैजू अपने पिता के अपमान का बदला लेने की कसम याद आयी और वह सरदार से आज्ञा लेकर तानसेन से अपने पिता का बदला लेने निकल जाता है .

बैजू तलबार लेकर तानसेन से अपने पिता के अपमान का बदला लेने महल में चला जाता है .जहां तानसेन संगीत साधना कर रहा था , तानसेन की संगीत साधना देख बैजू होश खो बैठा और उसकी तलवार नीचे गिर गई. तलवार नीचे गिरते ही तानसेन की साधना भंग हुई .

तब तानसेन ने बैजू से कहां कि उसको केवल संगीत से ही मारा जा सकता है. यह सुनकर बैजू वास्तविक संगीत की तलाश में गुरु हरिदास के पास पहुंच गए जो तानसेन के भी गुरु थे . बैजू हरिदास की शरण में संगीत शिक्षा ग्रहण करने लगे . तब हरिदास ने बैजू को बताया की बिना दर्द के संगीत कुछ भी नही है ,बिना पीड़ा के संगीत कुछ भी नही है . हरिदास की छत्र छाया में बैजू संगीत सीखने लगा .

बैजू की प्रेमिका गौरी - 

जहां एक तरफ बैजू हरिदास के यहां संगीत सीख रहे थे वही दूसरी तरफ गांव में गौरी बैजू की याद में जहर खाने की तैयारी कर रही थी, तभी डाकुओं की सरदार ने गौरी को बैजू का पता देती है. तब गौरी बैजू के पास पहुंच जाती है और बैजू को अपने साथ चलने को कहती है तब बैजू ,गौरी को अपने पिता को दिए गए वचन के बारे में बताता है .

उसी समय गुरु हरिदास आते हैं और बैजू गुरू के पास संगीत सीखने चले जाते है . हरिदास बैजू को फिर से समझाते है कि बिना पीड़ा के संगीत नहीं सीखा जा सकता है , हरिदास और बैजू की बातचीत गौरी सुन लेती है और बैजू की संगीत साधना के लिए खुद को सांप से कटवा लेती है और गौरी की मृत्यु हो जाती है .गौरी के गम में बैजू अपनी सुध - बुध  खो देता है . सुध बुध खोने के बाद बैजू को इस तरह गाते देख लोग बैजू को बैजू बावरा कहने लगे .

अकबर के दरबार में संगीत प्रतियोगिता -

इसी घटना के सम्राट अकबर ने अपने दरबार में एक संगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया. इस प्रतियोगिता की एक विशेष शर्त थी जो भी संगीत के इस महा मुकाबले में तानसेन को हराऐगा वह सम्राट अकबर के दरबार में संगीतकार बना दिया जाएगा तथा जो भी प्रतियोगी हारेगा उसे  मृत्युदंड दिया जाएगा . कोई भी संगीतकार इस शर्त के कारण प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लेता . परंतु जब यह समाचार बैजू बावरा सुनता है तो मानों बैजू बावरा को सब कुछ मिल गया हो . वह तुरंत अपने पिता के अपमान का बदला लेने के लिए प्रतियोगिता में लेने चल देता है तथा वह निश्चय करता है कि सम्राट अकबर के भरे दरबार में वह तानसेन को हरा कर अपने पिता के अपमान का बदला लेगा . लेकिन इस प्रतियोगिता में बैजू बावरा की हार हुई .कितु बाद में अकबर ने प्रसन्न होकर बैजू को अपने दरबार में रखने का प्रस्ताव रखा जिसे बैजू बावरा ने अस्वीकार कर दिया .

" सम्राट अकबर के दरबार में तानसेन और बैजू बावरा की संगीत प्रतियोगिता को लेकर इतिहासकारों में मतभेद है . अबुल फजल और फकीरुल्ला जैसे इतिहासकार के अनुसार बैजू ने तानसेन को प्रतियोगिता में हराया था और तानसेन ने बैजू बावरा के पैर छूकर अपने प्राणोंं की भीख मांगी थी . बैजू बावरा ने तानसेन को मांफ कर दिया और खुद ग्वालियर वापस चला गया." 

जीवन के अंतिम समय में बैजू बावरा -

बैजू बावरा सम्राट अकबर के दरबार से ग्वालियर आ गए जहां उन्हें सूचना मिली की उनके गुरु हरिदास समाधिस्त होने वाले हैं . वे अपने गुरू के अंतिम दर्शनोंं के लिए वृंदावन पहुंचे और उनके दर्शन करने के पश्चात विभिन्न प्रकार की आपदाओं का सामना करते हुए अपने जीवन के अंतिम समय में कश्मीर नरेश की राजधानी श्रीनगर पहुंचे .

उस समय बैजू बावरा का शिष्य गोपालदास वहां दरबारी गायक था . फटेहाल बैजू बावरा ने अपने आने की सूचना गोपालदास तक पहुंचाने के लिए द्वारपाल से कहा , तो द्वारपाल ने दो टूक जबाब दिया की उनके स्वामी का कोई गुरू नही है . 

यह सुनकर बैजू को काफी आघात पहुंचा और वे श्रीनगर के एक मंदिर में पहुंचकर राग ध्रुपद का गायन करने लगे . संगीत को सुनकर अपार भीड़ उमड़ने लगी . खबर कश्मीर नरेश को लगी तो वह स्वयं भी वहां आए तथा बैजू को अपने दरबार में ले आए . कश्मीर नरेश ने बैजू बावरा से उनके शिष्य गोपालदास को पुन: संगीत शिक्षा दिए जाने हेतु बैजू से निवेदन किए . राजा की आज्ञा  से उन्होंने गोपाल को पुन: संगीत शिक्षा देकर निपुण किया .

इस प्रकरण के पश्चात उदास बैजू अपने गांव चंदेरी वापस चले आए.

 मृत्यु -

बैजू बावरा की मृत्यु 71 वर्ष की आयु में मियादी बुखार के कारण चंदेरी में सन 1613 ई० में वसन्त पंचमी के दिन हो गई .



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