ग्रेटा थनबर्ग का जीवन परिचय ....
ग्रेटा थनबर्ग - एक ऐसा नाम जिसने दुनिया भर के नेताओं को पर्यावरण के मुद्दे पर कटघरे में खड़ा कर दिया . ग्रेटा महज 15 साल की , ग्लोबल वार्मिंग के खतरों पर केंद्रित एक स्वीडिश पर्यावरण कार्यकर्त्ता है . अगस्त 2018 में ग्रेटा स्कूल से समय निकाल कर हाथ में ( स्ट्रॉन्गर क्लाइमेट) की तख्ती लिए स्वीडिश संसद के बाहर प्रदर्शन करना शुरु किया .
ग्रेटा थनबर्ग का जीवन परिचय ....
परिचय -
नाम- ग्रेटा थनबर्ग .
पूरा नाम - Greta tintin Eleanora ernman thanberg
जन्म - 3 जनवरी 2003 .
देश - स्वीडन .
पिता - स्वांटे थनबर्ग .
माता - मलेना एर्नमेंन.
दादा - एस , अरहैनियस ( एक वैज्ञानिक थे जिनको 1903 में केमिस्ट्री का नोवेल मिला )
ग्रेटा का गुस्सा और पर्यावरण बचाने की मुहिम -
संयुक्त राष्ट्र में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर अपनी बातों से दुनिया भर के नेताओं का ध्यान अपनी ओर खीचने वाली ग्रेटा महज 15 साल की हैं . ग्रेटा दुनिया के सातवें सबसे अमीर और सम्पन्न देश स्वीडन की रहने वाली हैं .
ग्रेटा ने स्पेन के मैड्रिड शहर में चल रहे सयुक्त राष्ट्र के 25 वें जलवायु परिवर्तन अधिवेशन में ग्रेटा ने दुनिया भर के नेताओं के बारे में कहा कि वो लोग केवल बडी- बडी बाते करते हैं और भ्र्म पैदा करते है वह लोग भ्र्म पैदा करना बंद करे और रियल एक्शन करके दिखाएं .
ग्रेटा की अपील -
ग्रेटा की अपील पर उनके माता - पिता शाकाहारी बनने को तैयार हुए . इसके साथ ही वह चाहती हैं कि दुनिया में ज्यादा से ज्यादा लोग शाकाहार करे ,और हवाई यात्रा भी कम करे जिससे प्रदूषण कम हो और जलवायु परिवर्तन रुक सके .
ग्रेटा के प्रयासोंं का ही नतीजा है कि हवाई यात्रा करने वालों की संख्या में 8% की कमी आई.
कहने को ग्रेटा छोटी लड़की है पर दुनिया को बचाने के लिए हर मंच पर दस्तक देती है .
देखते ही देखते ग्रेटा एक अन्तरराष्ट्रीय पर्यावरण कार्यकर्त्ता बन गई . इस काम में सोशल मीडिया ने उनकी खासी मदद की और उन्हें अन्तरराष्ट्रीय मंचो पर बुलाया जाने लगा .
ग्रेटा को एस्पर्जर सिंड्रोम नामक बीमारी है.
यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें इंसान को समाज के साथ तालमेल बैठाने में दिक्कत होती है . ऐसे लोग आम लोगों के साथ जल्दी घुल - मिल नही पाते ,और लोगों के बीच जल्दी नर्वस हो जाते हैंं तथा लोगों से आंखे नही मिला पाते . ऐसे लोगों की रुचि किसी एक विषय में ज्यादा होती है ,बाकी के विषयों में विल्कुल नही .
दुनिया को ग्रेटा की जरूरत क्योंं है .
जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चर्चा और सभाएं पिछले कुछ दशकों से लगातार जारी हैं ,लेकिन इसका फायदा कुछ नही हो रहा वल्कि हाल के कुछ वर्षो में इसने मानव जीवन को प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित होना साफ नजर आता है .
एक लाख वर्षो का आइस डाटा यह बताता है कि औधौगिक क्रांति से पहले विश्व तापमान बढोतरी के कोई संकेत नहीं हैं औधोगिक क्रांति के बाद पृत्वी के औसत तापमान में 0.7 डिग्री की वृद्धि हो चुकी है .
आज दुनिया भर के बच्चे ग्रेटा के समर्थन में उनके द्वारा शुरु किए गए "फ्राइडे फॉर फ्यूचर " मुहिम में शामिल हो रहे है .अलग - अलग देशों के स्कूली बच्चे अपने - अपने देशों के नेताओं की जवाबदेही तय कर रहे है .
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