शरद जोशी के 11 व्यंग्य .
Sharad Joshi ( May 21, 1931 - September 5, 1991 ) - 1990 में पद्म श्री से सम्मानित एक भारतीय कवि, लेखक, व्यंग्यकार और हिंदी फिल्मों और टेलीविजन में एक संवाद और पटकथा लेखक थे .
शरद जोशी के 11 व्यंग्य .
1 - " शासन ने हम बुद्धिजीवियों को यह रोटी इसी शर्त पर दी है , कि इसे मुंह में ले हम अपनी चोंच को बंद रखें ."
Sharad Joshi.
2 - " अरे रेल चल रही है और आप उसमें जीवित बैठे हैं, यह अपने आप में कम उपलब्धि नहीं है ." (रेल हादसों पर )
Sharad Joshi.
3 - " उनका नमस्कार एक कांटा है , जो वे बार-बार वोटरों के तालाब में डालते हैं और मछलियां फंसाते हैं .उनका प्रणाम एक चाबुक है, हंटर है जिससे वे सबको घायल कर रहे हैं." (नेताओं पर )
Sharad Joshi.
4 - " सारे संसार की स्याही करें और सारी जमीन का कागज , फिर भी भ्रष्टाचार का भारतीय महाकाव्य अलिखित ही रहेगा ."( भ्रष्टाचार पर )
Sharad Joshi.
5 - " जनता को कष्ट होता है मगर ऐसे में नेतृत्व चमक कर ऊपर उठता है. अफसर प्रमोशन पाते है और सहयता समितियां चंदे के रूप में बटोरती हैं. अकाल हो या दंगा , अत्ततः नेता, अफसर और समितियां ही लाभ में रहती है."
Sharad Joshi.
6 - " एक मनुष्य ज्यादा दिनों देवता के साथ नहीं रह सकता . देवता का काम है दर्शन दे और लौट जाए , तुम भी लौट जाओ आतिथि ."
Sharad Joshi.
7 - " आदमी हैं , मगर मनुष्यता नहीं रही . दिल हैं मगर मिलते नहीं . देश अपना हुआ . मगर लोग पराये हो गए."
Sharad Joshi.
8 - " अतिथि केवल देवता नहीं होता , वो मनुष्य और कई बार राक्षस भी हो सकता है."
Sharad Joshi.
9 - " मेरा कसूर यह है कि लोग मुझे पढ़ते हैं."
Sharad Joshi.
10 - " जो लिखेगा सो दिखेगा , जो दिखेगा सो बिकेगा - यही जीवन का मूल मंत्र है."
Sharad Joshi.
11 - " अपनी उच्च परंपरा के लिए संस्कृत, देश की एकता के लिए मराठी या बंगला , अपनी बात कहने समझने के लिए हिंदी और इस पापी पेट की खातिर अंग्रेजी जानना जरूरी है."
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